-महावीर सांगलीकर
(इस लेख में दी गयी हर एक घटना सच्ची हैं. यह मेरा अपना अनुभव है. ऐसी घटनाएं आपके इर्द-गिर्द भी होती रहती हैं यह मैं जानता हूं.)
पहले मैं भी दूसरों की तरह मंदिर जाता था. लेकिन रोज नही, बल्की जब मन करे और समय मिले तभी. मंदिर जाने से धर्म का पालन होता है ऐसा मैने कभी नहीं माना. फिर भी खास मौकों पर मैं मंदीर जाया करता था, जैसे महावीर जयंती, दशलक्षण-पर्युषन पर्व या किसी जैन मुनी के आने पर.
लेकिन अब मैंने मंदिर जाना पूरी तरह से बंद कर दिया है. इसके कई कारण है. जैसे जब मै मंदिर में कभी कभार जाता था तो वहां के लोग मुझे शक की नजर से निहारते, जैसे कोई चोर आया हो. कुछ लोग मेरी पॅंट के उपर का पट्टा देखकर उसे उतारने का हुक्म देते. मैं पूछता, क्यों? कहते, चमडी का पट्टा यहां नहीं चलता. मैं कहता , लेकिन यह चमडी का नहीं, रबर का है. तो कहते, फिर भी उतारो. मैं सोचता था, यह लोग श्रावक नहीं, बल्की वॉचडॉग हैं. तभी कोई पहचानवाला आ जाता था और कहता था, अरे सांगलीकरजी, आप कब आये? आपका लेख पढा, आपने समाज का बहोत बडा काम किया है. फिर वह मेरी पहचान उन वॉचडॉगों से करा देता था. फिर उन वॉचडॉगों का मेरी तरफ देखने का नजरीया बदलता था. वे दुसरे किसी बकरे की तलाश में दरवाजे की ओर जाते थे.
और एक बार मंदिर गया तो वहां ट्रस्टियों के दो गुटों मे जोर का झगडा चल रहा था. हातापाई भी हो गयी. बाद में पुलिस आये और सबको पुलीस ठाणे ले गये. इस मंदिर में दूसरे मंदिरों की तरह हमेशा ऐसे झगडे होते रहते है. ट्रस्टियों का ट्रस्टियों से, मुनियों का ट्रस्टियों से और मुनियों का मुनियों से. वजह होती है पैसा.
एक बार मुझे मंदिर के अध्यक्ष का फोन आया. वह मेरे बचपन का दोस्त, रिश्तेदार और क्लासमेट भी है. कहने लगा, तुम मंदिर नहीं आते. आया करो. अपने लोगों की संख्या ज्यादा दिखनी चाहिये, नहीं तो मंदिर हमारे हाथ से चला जायेगा xxवालों के हाथ में. आप जानही गये होंगे की यहां भी अमुकवाल, तमुकवाल, ये, वो ऐसे कई जातीय गुट है. इन सबका उद्देश किसी भी तरह मंदिर को पूरी तरह से अपनी जाती के कब्जे में लाना यह है.
मंदिर में कई बार चोरी होती है. एक बार पुजारी ने ही चोरी की. पकडा गया. उसे निकाल दिया गया, लेकीन फिर से रखा गया. आजकल पुजारी मिलते जो नहीं. और उसे फिर से रखना जरुरी भी था ट्रस्टियों के लिये, क्यों की वह ट्रस्टियों के, मुनियों के कई राज जानता था. जैसे कि एक ट्रस्टी के लडकी का एक जवान मुनी के साथ अफेअर था और वह दोनो भाग जानेवाले थे. पुजारी के कारण मामला सामने आ गया और उस मुनी को अकेले ही भाग जाना पडा. किसी दूसरे मंदिर की ओर, नये मौके की तलाश में. बाद में पता चला की वह जवांमर्द मुनी सफल भी हुआ किसी करोडपती सेठ की सुंदर लडकी को भगाकर ले जाने में. दोनों ने शादी भी कर ली और आजकल दूर किसी देहात में छोटा सा किराना दुकान चलाते हैं.
खैर, इनसे भी भयानक घटनाएं मंदिरों में होती हुई मैंने देखी और सुनी है. जैसे किसी साध्वी का गर्भ ठहरना, या यहां तक की किसी मुनी ने एक श्राविका की हत्या के लिये किसी गुंडे को दी हुई सुपारी.
लेकिन एक घटना ने मुझे मजबूर कर दिया की अब बस हो गया. जिंदगी चली जायेगी लेकिन मंदिर जाने से कुछ फायदा नही होगा. वहां जाकर मैं भी उनके जैसा बन जाऊंगा.
मेरे घर के ही सामने, रस्ते की दूसरी ओर एक जैन मंदिर है. वह किस जैन पंथ से संबंधित है यह बात मैं नहीं बताऊंगा. मुझे किसी पंथ से कोई लेना देना नहीं है. मैंने पाया है की सभी पंथो के अनुयायी अनेक बातों में एक जैसे ही हैं. खैर, उस मंदिर में दूसरे दिन से प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होने वाला था. इस कार्यक्रम में शामील होने के लिये मुझे भी खास रूप से बुलाया गया था. लेकिन कार्यक्रम से पहले एक दिन रात को मुंबई शहर पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया. उस भयानक हादसे में कई लोग मारे जा रहे थे. उस रात भी और दुसरे-तिसरे दिन भी. कई पुलिसों ने और सैनिकों ने अपनी जान दे कर लोगो की जान बचाई. मुंबई से १८० कि.मी. दूर हमारे शहर में भी लोग आतंकवाद की छांव में थे. लोगों के चेहरो पर डर, गुस्सा, असहायता जैसी कई भावनाएं झलक रही थी.
लेकीन उसी समय सामने वाले जैन मंदिर में प्रतिष्ठा की तैय्यारी जोर-शोर से चल रही थी. हम कुछ लोगों ने उस मंदिर में विराजमान साधू से इस बारे में बात भी की. लेकिन उसने कहा, यह कार्यक्रम रद्द नही हो सकता, ना ही इसे पोस्टपोन किया जा सकता हैं. लाखों रुपये खर्च हो चुके हैं. कार्यक्रम रद्द करने से हमारा बडा घाटा हो जायेगा. और फिर उस हमले का कार्यक्रम रद्द करने से क्या संबंध हैं? इस शहर पर हमला होता तो अलग बात थी. वहां उपस्थित सेठो-साहुकारो ने भी यही कहा. हम निराश होकर वापीस आ गये.
मैं एक एनजीओ का काम देखता हूं. हमारे शहर के जो लोग उस काल में मुंबई गये थे, और जिनके रिश्तेदार मुंबई में थे उनका पता लगाने का काम हमारी संस्था ने शुरू कर दिया था. पता चला की यहां के ७ लोग सीएसटी स्टेशन पर आतंकवादियो के हमले में मारे गये थे. २५ लोग गंभीर रूप से घायल हो गये थे. कई लोगो का पता नही चला.
उधर लोग मर रहे थे और इधर यह मंदिर वाले जोर शोर से फिल्मी धुनो पर धार्मिक गीत गा रहे थे. उन्होने एक जुलुस भी निकाली. इस जुलुस में जैन युवक, युवतीयां और महिलाएं नाच रही थी. मैं यह बडे दुख के साथ देख रहा था. तभी एक दोस्त ने मुझे देखा और जबरदस्ती से मुझे खिंचकर जुलुस की ओर ले जाने लगा. मैने उसे जोर से धकेल दिया और चिल्लाया, तुम लोग जैन धर्म के दुश्मन हो. लेकिन बॅंडबाजे की आवाज के सामने मेरी आवाज किसी के कानों तक नही पहुंची. वे लोग अपनी ही मस्ती में चूर थे.
उस दिन से आज तक मैं किसी मंदिर में गया नही. आगे भी कभी नही जाउंगा. मैं नही चाहता की मैं भी उनके जैसा बनू. वैसे भी मंदिर जाना जैन धर्म में जरुरी बात नहीं है. अगर यह जरूरी बात होती, तो जैन धर्म में मंदिर और मूर्तिपूजा को न मानने वाले पंथ, जिनके अनुयायीयों की संख्या ५० फीसदी से जादा है, नहीं होते.
स्वागत है आपका हिन्दी ब्लाग जगत की इस मनोरम दुनिया में...
ReplyDeleteमनोरंजक चित्र, शिक्षाप्रद लघुकथाएँ और उत्तम विचारों से परिपूर्ण जिन्दगी के रंग में देखिये-
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इसमे कोई शंका नही है की धर्म के पालन करने वाले कषायवश धर्म से विचलित हो रहे है.लेकिन धर्म का इन मुनि टृस्तियो के अभिमान से कोई लेना या देना है.धर्म तो कहता है की यह वर्तमान शरीर या पुद्गल भी हमारा नही फिर मंदिर,टृस्ती,या मुनी इसके बीच मै नही आते.अत:आत्मा की और ध्यान दे.
ReplyDeleteHello,
ReplyDeleteI write in English,
Please dont consider all what is happening is bad. There are always aberrations in every society, It does not mean we need to stop going to temple. I request you please dont spread negative things about Jainism and Jain temples.
Nabhiraj
Hey,
ReplyDeleteI read your article. I have read mail change of your post on YJI community and hence come here..
Everyone has its own perception and view but here I think, you thought your view very negatively.
Like I have seen lots husband and wife fight with each other, son and father fight with each other, Neighbor fight with each other and some times friends fight with each other but that doesn't mean they leave each other and leave to talk each other or leave their home,right??.... Every Human being has good characteristic as well as Bad characteristic. People behave as per percentage of their characteristic.. Sometimes good people behave very badly but that doesn't mean he/she is bad person... May be You met wrong people every time or you are unable to see good people in Jain religion. If some people are bad then because of them , why are leaving to visit template? That's problem with us. We always say this is bad, that is bad, No one is hearing me but never check the root cause and then directly blame to religion. That was happened in Lord Shiva's time, that was happened in Lord Mahavir Swami's time ,that was happened in each lord's time (pick any lord and check their life) but they found root cause and worked on them...
If you are leaving to visit template that mean you are running away from issue or you are unable to find good thing in religion. So think again, try to see good thing...
Sorry if you feel bad, it just my experience and view...
But I feel temples do more harm than good. There is unnecessary wastage of money. There must be few temples with good maintenance & facilities.
DeleteDear sir you are right but why wen't try to change some system. Vinod Kumar Jain
ReplyDeleteHeyy bro. Ujval Shah,i am a student of comparitive religioni have a doubt please clearify it!!
ReplyDeleteI Read in Vedas that God has no images,no parents,no masters of himself and it is also said in vedas that God does not have any form, v cannot see his form with our own eyes... but Lord shiva, krishna etc have families of thier own ,they look exactly like humans, then how do u consider them to be God,I would like to know what u are saying is true or what is swaid in VEDAS are true... please help me out???
Hey bro, jainism doesn't believe in the concept of god.
DeleteAAPAKE LEKH ME MERE BLOG PAR POST KARANA CHAHATA HUN KRUPAYA PARMISHAN DE..मेरा अज़्म इतना बलंद है कि पराये शोलों का डर नही !
ReplyDeleteमुझे ख़ौफ़ आतिशे-गुल से है कही ये चमन को जला न दे !!
Thanks & regard,
Thanthanpal,
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